Friday, February 4, 2011

भारतीय आर्य भाषाएँ


हिंदी का जन्म और विकास भारतीय आर्यभाषाओं से हुआ है 
भारतीय आर्य भाषाओं के विकास क्रम को सामान्यतः
तीन काल खंडों में विभाजित किया जाता है ।
भारतीय आर्यभाषाओं का काल-विभाजन
1.प्राचीन भारतीय आर्यभाषा-काल
  (1500 ई०पू० से 500 ई०पू० तक)
2. मध्यकालीन  भारतीय आर्यभाषा-काल
  (500 ई०पू० से 1000  ई० तक)
3. आधुनिक भारतीय आर्यभाषा-काल     
(1000 ई० से अब तक)
प्राचीन भारतीय आर्यभाषा-काल
(1500 ई०पू० से 500 ई०पू० तक)
  • प्राचीन भारतीय आर्यभाषा-काल में संस्कृत के दो रूप मिलते हैं - वैदिक और लौकिक  ।
  • वैदिक संस्कृत का सर्वोतम स्वरुप ऋग्वेद की साहित्यिक भाषा में मिलता है 
  • वैदिक भाषा के धीरे धीरे परिवर्तित होने के कारण उसमें जनभाषा के लक्षण निरंतर आते गएपरिणामस्वरूप लौकिक संस्कृत का जन्म हुआ 
  • इस भाषा के रूप को स्थिर करने के लिए ही प्रसिद्ध वैयाकरण पाणिनि को 'अष्टाध्याय' की रचना करनी पड़ी
  • मध्यकालीन  भारतीय आर्यभाषा-काल
  (500 ई०पू० से 1000  ई० तक)

मध्यकालीन भारतीय आर्यभाषाओँ के विकास क्रम को मुख्यतः तीन भागों में हम देख सकते हैं:
1.पाली युग  2.प्राकृत युग 3.अपभ्रंश युग
1. पाली तथा अशोक की धर्म-लिपियाँ (500 ई.पू. - 1 ई.पू.)
2. साहित्यिक प्राकृत भाषाएं (1 ई. - 500 ई. )
3. अपभ्रंश भाषाएं (500 ई. – 1000 ई.)

पाली का अर्थ है पाठ’  बौद्ध धर्म का साहित्य पाली में ही लिखा हुआ है
प्राकृत का अर्थ है सहज
यह कई आधुनिक हिंदी उपभाषाओं की मूल भाषा है
कतिपय विद्वान अर्धमागधी, शौरसेनी इत्यादि भाषाओँ की जनक प्राकृत को ही मानते हैं ।
जैन धर्म का साहित्य प्राकृत में रचित है

प्राचीन भारत में यह आम नागरिक की भाषा थी और संस्कृत अति विशिष्ट लोगों की भाषा थी


अपभ्रंश का अर्थ है दूषित अर्थात जो शुद्ध ना हो.
यह भाषा ही आधुनिक हिंदी भाषा के मूल में है.
पश्चिम प्रदेश  की भाषा (उर्दू, पंजाबी आदि) के मूल में शौरशेनी अपभ्रंश  है,
मराठी, कोंकणी के मूल में महाराष्ट्री अपभ्रंश है.
गुजराती, राजस्थानी के मूल रूप में नगर अपभ्रंश है.

आधुनिक आर्यभाषाओं का जन्म अपभ्रंशों के विभिन्न क्षेत्रीय रूपों से इस प्रकार माना जा सकता है -

अपभ्रंश का क्षेत्रीय रूप.......... आधुनिक आर्यभाषा तथा उपभाषा

पैशाची ....................................................लहंदा, पंजाबी
ब्राचड ......................................................सिंधी
महाराष्ट्री ..................................................मराठी
अर्धमागधी........................................पूर्वी हिंदी
मागधी .............................बिहारी, बंगला, उड़िया, असमिया
शौरसेनी .................. पश्चिमी हिंजी, राजस्थानी, पहाड़ी, गुजराती

प्रमुख आधुनिक भारतीय भाषाओँ में हिंदी के अतिरिक्त
असमिया,        उड़िया,
गुजरती,       पंजाबी,
बंगला,            मराठी
और सिंधी की भी
गिनती की जा सकती है

अनुमानत: 1000 ई. के आसपास अपभ्रंश के विभिन्न क्षेत्रीय रूपों से आधुनिक आर्य भाषाओं का जन्म हुआ।
हिन्दी भाषा का जन्म अपभ्रंश से हुआ
हिंदी भाषा का उद्भव
अपभ्रंश के
अर्धमागधी,
शौरसेनी और मागधी
रूपों से हुआ है

हिंदी के अंतर्गत उन सभी बोलियों और उपबोलियों को सम्मिलित किया जा सकता है जो हिंदी प्रदेश में बोली जाती हैं.

वास्तव में हिंदी कुछ बोलियों और उपबोलियों का सामूहिक नाम ही है.
आर्य भाषाओं का सामान्य वर्गीकरण
1.उदीच्य (उत्तरी) – 1. सिंधी 2. लहंदा 3. पंजाबी
2. प्रतीच्य (पश्चिमी) – 4. गुजराती
3. मध्यदेशीय (बीच का) – 5. राजस्थानी 6. पश्चिमी हिंदी 7. पूर्वी हिंदी 8. बिहारी
4. प्राच्य(पूर्वी) – 9. उड़िया 10. बंगाली 11. आसामी
5. दक्षिणात्य (दक्षिणी) – 12. मराठी








भारतीय आर्य भाषाओं का विकास क्रम


भारतीय आर्य भाषाओं का विकास क्रम

भारत की सभी आर्यभाषाओं की तरह हिंदी का जन्म और विकास भी भारतीय प्राचीन आर्यभाषाओं से हुआ है विद्वानों ने सामान्य रूप से भारतीय आर्य भाषाओं के विकास क्रम को तीन भागों में विभाजित किया है -
  1. प्राचीन भारतीय भाषा
        (१५०० ई० पूर्व से ५०० ई० पूर्व तक)
  2. मध्य कालीन भारतीय भाषा
  (५०० ई० पूर्व से १०००  ई० तक)
  3.  आधुनिक भारतीय भाषा
  (१००० ई० से अब तक)

Thursday, February 3, 2011

हिंदी व संस्कृत के बारे में कुछ महत्वपूर्ण बातें


हिंदी व संस्कृत के बारे में

कुछ महत्वपूर्ण बातें

Øआज हम जिस भाषा को हिन्दी के रूप में जानते हैं, वह आधुनिक आर्य भाषाओं में से एक है।
Øआर्य भाषा का प्राचीनतम रूप वैदिक संस्कृत है, जो साहित्य की परिनिष्ठित भाषा थी।
Øवैदिक भाषा में वेद, संहिता एवं उपनिषदों - वेदांत का सृजन हुआ है।

संस्कृत के बारे में कुछ महत्वपूर्ण बातें
üवैदिक भाषा के साथ-साथ ही बोलचाल की भाषा संस्कृत थी, जिसे लौकिक संस्कृत भी कहा जाता है।
ü
üसंस्कृत का विकास उत्तरी भारत में बोली जाने वाली वैदिककालीन भाषाओं से माना जाता है।
ü
üअनुमानत: ८ वी.शताब्दी ई.पू.में इसका प्रयोग साहित्य में होने लगा था।
üवाल्मीकि, व्यास, कालिदास, अश्वघोष, भारवी, माघ, भवभूति, विशाख, मम्मट, दंडी तथा श्रीहर्ष आदि संस्कृत की महान विभूतियाँ हैं।
üइसका साहित्य विश्व के समृद्ध साहित्य में से एक है।

Wednesday, February 2, 2011

‘ हिंदी ’ शब्द की उत्पत्ति - कुछ धारणाएँ


हिंदी शब्द की उत्पत्ति
Øहिन्दी वस्तुत: फारसी भाषा का शब्द है, जिसका अर्थ है-हिन्दी का या हिंद से सम्बन्धित।
Øहिन्दी शब्द की निष्पत्ति सिन्धु’  (सिंध) से हुई है क्योंकि ईरानी भाषा में "" को "" बोला जाता है।
Øइस प्रकार हिन्दी शब्द वास्तव में सिन्धु शब्द का प्रतिरूप है। कालांतर में हिंद शब्द सम्पूर्ण भारत का पर्याय बनकर उभरा ।
Øइसीहिंद से हिन्दी शब्द बना।

Tuesday, February 1, 2011

भारोपीय परिवार

भारोपीय परिवार
भारोपीय परिवार की भाषाओं को ध्वनि के आधार पर प्रायः दो समूहों में विभक्त किया जाता है ।  1.केंटुम् और 2.शतम्