Wednesday, October 10, 2012

ध्वनियों का वर्गीकरण



ध्वनियों का वर्गीकरण

स्वरों का वर्गीकरण

अ.     स्थान के आधार पर
  1. कंठ्य स्वर     
  2. तालव्य        - इ
  3. मूर्धन्य             - ऋ
  4. दंत्य          - लृ
  5. ओष्ठ्य             - उ
  6. अनुनासिक      - अँ
  7. कंठतालव्य      - ए,
  8. कष्ठोष्ठ्य       - ओ,
  9. दंतोष्ठ्य - व ( इसे अर्ध स्वर कहा जाता है
आ.   प्रयत्न के आधार पर
  1. जिह्वा के भागों की दृष्टि से
अग्र स्वर       – 
मध्य स्वर     
पश्च स्वर      , , ,
2. जिह्वा की ऊँचाई की दृष्टि से
विवृत (मुख-विवर पूरा खुला हो, जीभ निश्चेष्ट पड़ी हो)                    ,
अर्ध-विवृत (मुख-विवर लगभग पूरा खुला हो, जीभ एक तिहाई उठी हो)        – ऐ,
अर्ध-संवृत (मुख-विवर संकरा हो, जीभ दो तिहाई उठी हो)                   ,
संवृत (मुख-विवर अत्यंत संकरा हो, जीभ बहुत ऊपर उठी हो या चंचल हो)     , , ,
3. ओष्ठों की आकृति की दृष्टि से
वृत्ताकार (वृत्तमुखी स्वर)        – उ, , ,
अवृत्ताकार                    , , ,
उदासीन                            
4. बल अथवा मात्रा की दृष्टि से  
उच्चारण में लगने वाले बल अथवा समय को मात्रा कहते हैं ।
ह्रस्व                 , ,
दीर्घ                  , ,
प्लुत -              
5. स्वर तंत्रियों की स्थिति के अनुसार
घोष स्वर  –   हिंदी के सभी स्वर घोष होते हैं क्योंकि निःश्वास को बाहर निकलते समय स्वर तंत्रियों से घर्षण करना पड़ता है ।
अघोष स्वर, , (स्वर तंत्रियों में घर्षण कम होता है)
6. कोमल तालु तथा अलिजिह्वा की स्थिति के अनुसार     
       मौखिक –  , , ए आदि (ये दोनों अंग जब नासिर-विवर को पूरी तरह बंद कर देते हैं, तब हवा केवल मुख मार्ग से निकलती है ।  ऐसे में उच्चरित होने वाला स्वर मौखिक होता है ।)
  अनुनासिकआँ, एँ (जब यह अंग मध्य स्थिति में होते हैं तो वायु मुख और नासिका दोनों ही मार्गों से निकलती है,  ऐसी ध्वनि को अनुनासिक कहते हैं)
       अनुनासिक स्वर ध्वनियाँ दो प्रकार की होती हैं ।
पूर्ण अनुनासिक                – आँ, एँ
अपूर्ण अनुनासिक (नासिक्य व्यंजनों के आधार पर, स्वर उच्चारण में आंशिक अनुनासिक, मगर लेखन में अपूर्ण अनुनासिक चिह्न नहीं लगाया जाता है)  – राँम् र् आँ म् (राम)

व्यंजन ध्वनियों का वर्गीकरण

  1. स्वरयंत्र मुखी – (इन ध्वनियों में स्वरयंत्रमुख का ही महत्वपूर्ण स्थान होता है) ह तथा विसर्ग (:)
  2. काकल या अलिजिह्वीय (काकल या अलिजिह्वा से उच्चरित होनेवाली ध्वनियों को काकल्य व्यंजन कहा जाता है) क़, ख़, ग़ आदि (अरबी की ध्वनियाँ)
  3. कंठ्य   , , ,
  4. तालव्य , , , ,
  5. मूर्धन्य , , , , ,
  6. वर्त्स्य ह्न ( ह् न ), , , ,
  7. दंत्य    , , , ,
  8. ओष्ठ्य , , , ,
  9. दंतोष्ठ्य        , फ़
आभ्यांतर प्रयत्न का वर्गीकरण
  1. स्पर्श व्यंजन – (दाँत का जिह्वा से अथवा दोनों ओष्ठों या फिर जिह्वा व तालु का स्पर्श होने से ये ध्वनियाँ उच्चरित होती हैं) हिंदी में कवर्ग, चवर्ग, टवर्ग, तवर्ग, पवर्ग (25 व्यंजन)
  2. स्पर्श संघर्षी– (मुखद्वार को बंद करके बोलते समय हवा स्थानों कुछ  रगड़ती चलती है) च्, छ्, ज्, झ् ।
  3. अनुनासिक (मुखद्वार बंद करके खोला जाता है, किंतु साथ ही नासिका विवर भी खुला रहता है) ङ्.ञ्, ण्, न्, म ।
  4. पर्श्चिक – (मुखद्वार बीच में बंद हो जाता है और हवा दोनों ओर से निकल जाती है)
  5. लुंठित – (जीभ की नोक मसूड़े पर जाती है, पर वहाँ दो-तीन बार जल्दी-जल्दी श्वास को रोककर छोड़ देती है । - र्
  6. उत्क्षिप्त जिह्वा-नोक उलटकर झटके के साथ तालु को छूकर जब हट जाती है, तब इस ध्वनि की उत्पत्ति होती है ।  - ड़, ढ़
  7. अर्द्ध-स्वर – (मुखद्वार सँकरा करते हैं, परंतु इतना नहीं कि श्वास के निकलने में घर्षण हो ।  ये ध्वनियाँ व्यंजन तथा स्वर के बीच में पड़ती हैं) ,
बाह्य प्रयत्न

  1. अघोष (स्वर तंत्रिया एक दूसरी से अलग-अलग रहती हैं तथा निःश्वास से उनमें कंपन भी बहुत कम होता है) हिंदी में प्रत्येक वर्ग की प्रथम द्वितीय ध्वनियाँ तथा श, , स अघोष ध्वनियाँ हैं । - क-ख, च-छ, ट-ठ, त-थ, द-ध, प-फ ।
  2. घोष – (जिनमें स्वर तंत्रियाँ परस्पर नज़दीक आती हैं तथा उमनें कंपन होता है) प्रत्येक वर्ग की तृतीय, चतुर्थ एवं पंचम् ध्वनियाँ ग-घ-ङ, ज-झ-ञ आदि ।
  3. अल्प प्राण – (उच्चारण में प्राणवायु की मात्रा न्यून होती है) प्रत्येक वर्ग की प्रथम, तृतीय, पंचम ध्वनि क-ग-ङ आदि ।
  4. महा प्राण – (उच्चारण में निश्वास का अधिक प्रयोग होता है ) प्रत्येक वर्ग की दूसरी और चौथी ध्वनियाँ ख-घ, छ-झ आदि ।
  5. विवार – (स्वर तंत्रियाँ पूर्णतः खुली हों, और उस समय जो ध्वनियाँ उच्चरित हों तो उन्हें विवार ध्वनियाँ कहा जाता है ) , , , , प आदि ।
  6. संवार – (जब स्वर तंत्रियाँ बंद होती हैं तथा ध्वनियाँ उच्चरित हों तो उन्हें संवार ध्वनियाँ कहा जाता है ) , , , ब आदि ।
  7. श्वास जब मुख विवर में प्रश्वास- निःश्वास की क्रिया निरंतर जारी रहती है तथा ध्वनियों का उच्चारण बिना किसी बाधा के होता है उन्हें श्वास ध्वनियाँ कहा जाता है) , , ठ आदि
  8. नाद – (उच्चारण में श्वास-प्रश्वास की क्रिया निरंतर अबाधित नहीं रहती बल्कि स्वर तंत्रियों में कंपन पैदा होता है तो नाद ध्वनियाँ उच्चरित होती है) , , न आदि ।

3 comments:

  1. वास्तव में यह बहुत ही अच्छा है जो भी हिंदी से कुछ करना चाहते हैं उनके लिए बहुत कारगर है

    ReplyDelete
  2. बहुत ही सरलता से समझाया गया है।

    ReplyDelete