रूप विज्ञान
रूप
विज्ञान की अवधारणा
पदों अथवा रूपों से संबंधित वैज्ञानिक अध्ययन करनेवाली शाखा को रूप विज्ञान कहा जाता है ।
नापि केवला प्रकृतिः
प्रयोक्तव्या नापि केवल प्रत्ययः -
- पतंजली
(न तो केवल प्रकृति
(मूल शब्द) का प्रयोग करना चाहिए न केवल प्रत्यय ही)
Ø मूल शब्द और उसमें
यथास्थिति प्रत्यत, उपसर्ग आदि लगाकर ही उसका वाक्य में प्रयोग करना
चाहिए ।
Ø मूल शब्द में
प्रत्यय या उपसर्ग मिलाने से जो रूप बनता है उसे ‘पद’ या ‘रूप’ कहते हैं ।
प्रसिद्ध
व्याकरणाचार्य पाणिनि ने पदों को दो भागों में बाँटा है -
सुप्तिङ्न्तम् पदम्
(अर्थात् विभक्तियाँ
‘सुप्’ और ‘तिङ्’ में विभाजित होती
हैं ।
शब्द रूपों में ‘सुप्’ लगता है तथा क्रिया रूपों में ‘तिङ्’ लगता है)
Ø उदा – पद रूप – रामः
रामौ रामाः (सुप्) – प्रथमा
धातु रूप – गच्छति गच्छतः गच्छन्ति (तिड़्) – परस्मैपद, लट् लकार
Ø शब्द का प्रयोग
के लिए तैयार स्वरूप ही ‘पद’ या ‘रूप’ होता है ।
पद और
शब्द में अंतर
Ø शब्द का प्रयोग
के लिए तैयार स्वरूप ही ‘पद’ या ‘रूप’ होता है ।
Ø उदा – ‘जाना’ मूल शब्द है । इसका इसी रूप में प्रयोग नहीं होता है बल्कि
पुरुष, लिंग,
वचन, काल के अनुसार इसमें
परिवर्तन करना होगा ।
Ø 1. राम जाता है । 2.राम जाएगा । 3. सीता जाती है । 4. वे जाते हैं । 5. वे जाएंगे । 6. वह गई । 7. वे
गए । 8. वह जा रहा है । 9. वह जा रही है ।
10. तू जा । 11. तुम जाओ । 12. आप
जाइए । 13. क्या आप जाइएगा ? 14. जाना मना है । 15. जाते-जाते । 16. जाने
वाले । 17. जाने वाला । 18. जाने
वाली आदि ।
शब्दों
का वर्गीकरण
Ø शब्दों के वर्गीकरण
के मुख्य आधार – 1.व्याकरण 2.संरचना
3.इतिहास
Ø 1. व्याकरण के आधार
पर वर्गीकरण –
1. नाम 2. आख्यात 3.निपात 4. उपसर्ग ।
Ø 2. रचना / संरचना के आधार पर
वर्गीकरण –
1. रूढ़ (जिसका विभाजन नहीं
हो सकता, पानी =
जल )
2. यौगिक (दो शब्दों का योग,
कर्मयोगी
3. योग रूढ़ (शब्द यौगिक तो
हैं लेकिन किसी शब्द के लिए योग रूढ़ हो गए
हैं । पंकज = कमल (पंक + ज)
Ø 3. इतिहास के आधार
पर वर्गीकरण –
1. तत्सम 2. तद्भव 3. देशज 4. विदेशी ।
संबंध
तत्व और अर्थ तत्व
Ø वाक्य में मुख्यतः
दो तत्वों का समावेश होता है –
Ø 1. संबंध तत्व 2.अर्थ तत्व
Ø संबंध तत्व के
प्रकार –
1. सामासिक संबंध
तत्व 2. शून्य संबंध तत्व 3. स्वतंत्र संबंध तत्व 4. प्रतिस्थापन द्वारा 5.द्विरावृत्ति द्वारा 6. योजन द्वारा (आदि, मध्य और अंत)
7. बलाघात द्वारा ।
Ø 1. सामासिक संबंध
तत्व–
राजपुत्र = राज का
पुत्र, ‘का’ – संबंध तत्व सामासिक
Ø 2. शून्य संबंध तत्व
– कर,
जा, खा आदि, बिना परिवर्तन के
भी संबंध का बोध
Ø 3. स्वतंत्र संबंध
तत्व – ने,
को, से, द्वारा, के लिए आदि संबंध
तत्व दर्शाते हैं ।
Ø 4. प्रतिस्थापन –
‘जा’ शब्द का भूतकाल ‘गया’, ध्वनि प्रतिस्थापन
Ø 5. द्विरावृत्ति –
थपथपाना, खटखटाना, बड़बड़ाना, व्याकरण स्वीकृत
नहीं/अपशब्द
Ø 6. योजन(आदि,
मध्य और अंत)
– ‘द्वार’ के अंत में ‘ए’ – द्वारे, संबंध तत्व
Ø 7. बलाघात – हिंदी में उर्दू,
फारसी और संस्कृत से
आए शब्दों
में बलाघात से
संबंध तत्व स्थापित किया जा सकता है...
Ø उदा – ‘कत्ल’ शब्द क्रिया रूप है
लेकिन सुर या बलाघात परिवर्तित करने से यह संबंधसूचक बन जाता है ।
Ø जैसे – कातिल = कत्ल करने वाला, मक्तूल = मरा हुआ, मक़तल = कत्ल की जगह, कुत्ताल = कत्ल करने वाले (बहुवचन), तकातुल = (आपसी मार-काट)
मुक़ातला आपसी लड़ाई, तक़लील = अनेक कत्ल आदि ।
संबंध तत्व का उद्देश्य –
Ø संबंध तत्व के
उद्देश्य या कार्य हैं – अभिव्यक्ति को सुगम व सही रूप देना । संबंध तत्व हटा दिया जाएं तो
वाक्य अर्थ दे ही नहीं सकता है...
Ø अतः अर्थ तत्व
के लिए पहले संबंध तत्व की आवश्यकता होती है ।
Ø संबंध तत्व काल, लिंग, पुरुष, वचन, कारक की अभिव्यक्ति
करता है ।
रूप
परिवर्तन प्रकार (प्रक्रिया)
•
रूप परिवर्तन (Morphological Change)
–
रूप कोई स्थायी व्याकरणिक कोटि नहीं है बल्कि यह एक
गत्यात्मक प्रक्रिया होती है ।
–
रूप भी परिवर्तित होते रहते हैं
–
रूप परिवर्तन अग्रांकित प्रकार से होते हैं –
1. नियमों से 2. नियम
विरुद्ध 3. प्रयोगसिद्ध 4. स्पष्टता हेतु
5. अज्ञान 6. अनावश्यक प्रयोग 7. अनावश्यक बल 8. काव्यात्मक प्रयोग ।
Ø रूप परिवर्तन
अग्रांकित प्रकार से होते हैं –
Ø 1. नियमों से – कर शब्द से किया
Ø 2. नियम विरुद्ध – कर शब्द से करा
Ø 3. प्रयोगसिद्ध – कीजिए की तर्ज पर
करिए
Ø 4. स्पष्टता हेतु – दर + अस्ल = दरअसल, ‘स’शब्द पूरा हो गया है
Ø 5. अज्ञान –
पूजनीय के लिए पूज्यनीय, सौंदर्य के लिए सौंदर्यता सुंदरता
Ø 6. अनावश्यक प्रयोग – तुम के लिए तुम लोग, सज्जन के लिए सज्जन
व्यक्ति,
Ø 7. अनावश्यक बल – अनेक की जगह
अनेकों
Ø 8. काव्यात्मक
प्रयोग –
हथियाया,
गरियाया... (आदि नए शब्द गढ़कर भाषा में चमत्कार उत्पन्न करना)
रूप
परिवर्तन के कारण
Ø रूप परिवर्तन
अग्रांकित कारणों से होते हैं –
Ø 1. प्राचीन से नवीन – रामम् की जगह राम
को
Ø 2. अतिरिक्त प्रत्यय
का प्रयोग – जेवरात की जगह जेवरातों
Ø 3. नए प्रत्यय
प्रयोग –
प्रभावशाली के स्थान पर प्रभावी, वैज्ञानिक के स्थान पर विज्ञानी,
Ø 4. दिशा परिवर्तन –‘को’ चिह्न को लगाने के
नए प्रयोग चल पड़े हैं – मुझे / मुझको के बदले मेरे को, तुझे / तुझको के बदले तेरे को,
रूपिम विज्ञान अथवा रूपग्राम विज्ञान (Morphemics)
Ø रूपिम विज्ञान (Morphemics) रूप विज्ञान की एक आधुनिक शाखा है ।
Ø इसमें किसी भाषा के रूपों (morph) का अध्ययन-विश्लेषण करके उनके अर्थ एवं वितरण
आदि के आधार पर रूपग्राम (morpheme) एवं
उप रूप एवं संरूप (allomorph) का
निर्धारण किया जाता है, साथ ही दो या अधिक
रूपिमों के योग से जब किसी संयुक्त रूपिम (complex morpheme) या मिश्रित रूपिम (compound morpheme) का निर्माण होता है तो उसमें यह भी देखा जाता है कि योग के पूर्व की
तुलना में उसमें कोई ध्वन्यात्मक परिवर्तन तो नहीं आया और यदि आया है तो उसका आधार
क्या है ।
रूपिम अथवा रूपग्राम
Ø भाषा या वाक्य की लघुतम सार्थक इकाई को
रूपग्राम अथवा रूपिम कहते हैं ।
Ø उदा – उसके रसोईघर
में सफाई होगी ।
Ø उक्त वाक्य में – उस, के, रसोई, घर, में, साफ, ई, हो, ग, ई – ये दस
रूपिम हैं ।
Ø रूपग्राम अथवा रूपिम दो प्रकार के होते हैं – 1. मुक्त रूपिम 2. बद्ध रूपिम
Ø मुक्त रूपिम (Free morpheme) –
जो अकेले या अलग भी
प्रयोग में आ सकते हैं उन्हें मुक्त रूपिम कहते हैं । उक्त वाक्य में - रसोई, घर, साफ़ - इसी प्रकार के हैं । ये अलग, मुक्य
या स्वतंत्र रूप से भी आ सकते हैं । (जैसे – रसोई
बन चुकी है) और अन्य रूपिमों के साथ भी आ सकते हैं । (जैसे – रसोईघर)
Ø बद्ध रूपिम (Bound morpheme) –
जो अलग प्रयोग में
नहीं आ सकते हैं उन्हें बद्ध रूपिम कहते हैं ।
जैसे , ता (एकता, सुंदरता)
या ई (जैसे घोड़ी,
लड़की, खड़ी आदि में) आदि ।
Ø अर्थ और कार्य के आधार पर रूपिम के दो भेद होते
हैं – 1. अर्थ दर्शी रूपिम 2. संबंधदर्शी रूपिम या
कार्यात्मक रूपिम ।
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Aapka lekh padkar accha laga
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